मुरधर नै थाप उथापी मरदे, रिड़माले दोय राहां।

थाप उथाप दिली रा थाया, सार बतावे साहां।

जूना बिरद नवा जग जाहर, करवा बांधौ कमरां।

बैरां छोड पधारौ बाहर, डेरां फौजां डमारां।

आठूं मिसल तणा उमरावां, मरवां तांणे मूंछां।

पाखर घाल पलांणे पमंगां, करौ कूच दर कूंचा।

बैठा किसूं फाड़ियां बाको, जोधांणे लग जावौ।

सुलळी कुलळी अरज सांम सूं, मांनै जेम मनावौ।

सांम धरम सूं कारज सुधरै, सांमधरम संभावौ।

सांम धरम सूं सांम समझै, वणती देख वणावौ।

जड़ळग पांण बखतसी जोधै, कालै हीमत किधी।

पाड़े माल पटै री पाछी, लाठी कर धर लीधी।

खत्रवट तणी पकावौ सिरदारां, काहूं ताकौ काछी।

आगे वचन काढ़ता आघा, जग नै गण त्रण जैसौ।

खत्रियाँ हमें घरां रै खूणै, पाछा कासूँ पैसौ।

खाधौ मुलक वांणियां खोसे, निरबळ गोलां, नाथां।

मांटीपणौ करौ रिड़मालां, हीमत पकड़ौ हाथां।

कर कर सला विचारौ कासूं, वडा सिलारा ससंदवजे।

मेळे सला करौ की माथा, ऊँचा-नींचा नरां अजे।

‘बाळकनाथ’ कहै छै बाबा, मांनौ साची मारी।

‘मान’ महीप कदे नह मांने, थोरै अरजां थांरी॥

स्रोत
  • पोथी : दरजी मयाराम री बात ,
  • सिरजक : बुधजी आशिया ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया