पारंभगुर तूझ संपेखै पातल,
वडा सुरिंद मिळि करै विचार।
किम खगधार चलावी कीरिती,
धन आवीयौ स केम खगधार॥
इणि परि तूझ तणै ऊदाउत,
रुद्र सुर अचिरज हुवा रहैं।
सुजस संपति बे आम्बो साम्हो
वाढ़ खड़ग उपरीं वहैं॥
प्रम सुर हूवा अचंभम पातल,
धर आसति मेवाड़ धणी।
अति जस केम चालीयौ अणीये,
अथ आयौ किम मुहरि अणी॥
ऊतिम मधिम देवराज ऊपरि,
कै घट राखे रमै कळा।
धार खड़ग बे मयंक कळोधर,
कीति अनै चलवी कमळा॥