लख जूटै मीर स खूटै लोहे,
लख द्रब कोड़ि भंडारां लाइ।
अकबर वरतण दियौ ऊंबरां,
पातल रांणा तणै पसाइ॥
मेल्हैं फौज स फौज मारिजै,
मेलि बिया भड़ करै मंडांण।
खौद तणा लसकर द्रब खांएं,
खड़ग पसाइ तूझ खूमांण॥
आवै थाट स थाट आवटै,
अनि अनि मेलै खपै अयार।
असपति गरथ दियै उळगांणां,
असिमर रांण तणा उपगार॥
भुज भांजीयै जम करि भारथ,
भुज पूजीयै तेम भाराथि।
हैंवै मुगति भुगति फळ होवै,
हींदूवां रांण तुहारैं हाथि॥