सांभळ जो बात बारलां सारां, कमंध महीलां कालां।
बारै मांहै धड़ा बांधता, ठौड़ गमासौ ठालां॥
एकण दादै तणा ऊपना, वीरम रा थे वाजौ।
घर में फाट विनां बळ घलता, लाज वहीणां लाजौ॥
आछा करौ रहो मन एकै, काचा बचन म काढौ।
कंपनी साह कहै सो कारज, छळब पेसां चाढौ॥
माहो-माहि म तांणौ मुहडां, भायां राखौ भेळा।
दिलमें घाट समै रो देखो, वरतांणी आ वेळा॥
संप सूं वात सदाई सुधरै, विगड़ै कुसंपां वाळा।
राखे संप अगे राठौड़ां, चढ कीधा धकचाळा॥
बारै वरस दिली सूं बांधी, आडी खाग अड़ीलां।
पकड़े साहां तणा पूंगड़ा, डारण लाया डीलां॥
मुरधर धणी बिनां मुरड़ा टै, रजपूती कर राखी।
हजरत अगै बिखा में हारे, दोरम किणी न दाखी॥
दुरंगै सोनंग जगै दिलीरा, खाधा खोस खजांनां।
असपत अगै हमेसां आती, कूकां च्यारूं कांनां॥
जूनी वातां सह थे जांणौ, समजौ मनमें सारा।
रांम रीमेदे एक रहीजो, नरां म फंटज्यो नारा॥
बाळकनाथ नफै रा बेली, मांणस थापै मोटा।
वचनां माथै धूड़ वळावे, टळजावे लख टोटा॥
थांरा गीत कहे हूं थाकौ, थांरा कपट न थाका।
सुणजो गीत सकौ सिरदारां, दियूं नगारे डाका॥
सांम धरम रा बिरद संभाज्यो, रखजो साहिब राजी।
राजी माहो-मांहि रहोला, तड़ां रहैला ताजी॥