कमल फूलिया सकव छिब देख स्वाक्तिकरण, तरफ चहुं गुलालां अरुण तावै।
राज री मांन न्रप छभां रितराज रो, फजर महराज रो तरह फावै॥
बिजाहर दिन दुलह खेलतां रंग बसंत, लेख कब जिसह थल उपम लाभा।
गुलांला अबींरां छयौ जोधानगर, ज्यैगिर सहसकर जेम आभा॥
कमध दरगाह केसर अगर कुमकुंभा, बिलंद औछाह रंग सुगंध बरसै।
उपासक नाथ रा प्रभा फागां अरुण, दिवाकर प्रांत रा जेम दरसै॥
छभां बागां़ महल सहर घर गिर छया, अबीरा गुलालां सुरंग ओलै।
पेख वदिया जगत फाग जोधाणा पत, भाणा उदिया गिरद तणै भोलै॥