वीरारस चंद रूक वावरतां, मेछ धूणतां परबत माळ।

तूं दस मास हंस डोलीयौ, ताल दुहेलौ हेकाइ ताळ॥

खट चत्रमास राउ खेडेचा, गहणि जिकोइ तूं जेम गहै।

एकोइ निमख आतमां अवरां, रूक वहंत ठौड़ रहै॥

पळ हेक बिया पैसंतां पिड़िभुंइ, पड़ीयाळग वळ छंडै प्रांण।

मेछां घाइ मिलीयौ मालाउत, मास सपत मुर अमळीमांण॥

कुर पडंव दिवस अढार कळहीया, मिळीया रामायेण खटमास।

पख दह दूण वूहा पड़ोयाळग, अखीयात चंद आकास॥

स्रोत
  • पोथी : डूंगरसी रतनु ग्रंथावली ,
  • सिरजक : डूंगरसी रतनू ,
  • संपादक : सौभाग्यसिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी ,
  • संस्करण : प्रथम
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