गयण अधोखे हणूं द्रोण गिरंद, समंद जल न धोखे मुनिन्द्र सोखे।
नागइन्द्र सरोखे खगिन्द्र माधव नरिन्द्र, जवाहिर व्रजिन्द जुध तुहिज जोखे॥
राजनग वीर वाहे विकट राह नूं, दध अथग थान नू अथग दाहे।
नवकुळ नाह नूं नीठाहे वहन नभ, ग्रहण पतसाह नूं महण गाहे॥
उकासण अनड़ अंजेवण अंग उमाहे, महासिंघ समाहे मुनिन्द्र मुंहंडै।
अहिसिली मोड़ पत्रनाथ रणधरण अत्र, दिली छत्र तोड़ सत्र तुंहिज दुहंड़ै॥
वात कुंभ कसप जैसाह नंद महाबळ, महिन्द्र सामन्द्र व्रजंन्द्र दळ मीच।
निमंधियो अखंडळनाथ पंचम नको, वीर खळ खंडळ वसुधा मंडळ बीच॥