महा मंडियौ जाग उज्जैण खागा मधै,

रुदन बिलखावती रही रोती।

हेळवी अमर री हीय करती हरख,

जसा अपछर रही बाट जोती।

किया काचा अमर सूरहर कळौधर,

डरत गत पीधौ फूल दारू।

बडा री भोळवी हूर आवी वरण,

मेलती गई नीसास मारू।

पाटवी हेळवी बेगमै पैलकै,

तैं समै अैलकै लीघ टाळा।

पागती दलौ नै रतन परणीजतै,

बाट जोती रही गजन वाळा।

तौ वीवाह री बाट जोती जगत,

रूक बळ त्रासियौ गियौ राजा।

मराड़ी जांन घर आवियौ मांडवै,

तेल चढ़ती रही अछर ताजा॥

स्रोत
  • पोथी : नरहरिदास बारहठ ,
  • सिरजक : नरहरिदास बारहठ ,
  • संपादक : सद्दीक मोहम्मद ,
  • प्रकाशक : महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश, जोधपुर। ,
  • संस्करण : प्रथम