चांदावत कहै चाढो चरवां, दोड़ो बेगज दासी।
बाजत गोळा दिवणी बिढिया, आज तो रावळ आसी।
जोड़े करां बडारण जंपे, मुलक कर बोलो मोसो।
रण में कहो कंथ आवण रो, भोलां किसो भरोसो॥
बसी अनै खाटू नह बिढियो, भिन भिन जाणूं न भेदां।
भारथ नाह सदा ही भाजै, उचरै बयण उमेदां॥
कांसो करो सिताबी कामण, भामण पंथ दिस भाळो।
पाती पाग पमंग दे पैलां, आसी कंथ उपाळो॥
भरता तणी परख कर भोजन, रायजादी रंधवायो।
इसड़ी करी उतावळ इन्दै, अधसींजै ही आयो॥