विजड़ ऊठियौ धूण गिर मेर रो बहादुर,

पछै म्हे कदे अवसाण पावां।

“अमर” नै सुरग दिस मेल नै अेकलो,

आगरै लड़ेबा कदे आवां॥

अम्हें तो “अमर” राजा तणा ऊमरा,

जुड़ेबा पार की छठी जागां।

बोलियो ‘बलू’ पतसाह रै बराबर,

मारवै-राव रो बैर मांगां॥

केसर्यां मांह गरकाब वागा करे,

सेहरो बांध हलकार साथै।

“अमर” रो भतीजो तौल खग आखवै,

“बलू” अर अग्गरां हुवा बाथै॥

पटा नै नाखि भिड़ साह सूं चटापड़

कांम नव-कोट सांचो कमायो।

वाद कर साह सूं वैर न्रप वोढियो,

“अमर” नै मुहर करि सरग आयो॥

स्रोत
  • पोथी : गाडण केसोदास ,
  • सिरजक : गाडण केसोदास ,
  • संपादक : बद्रीदान गाडण ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी, नई दिल्ली। ,
  • संस्करण : प्रथम