बंछत मान हेत सुपाता बरसै, नव निध दरसै विभा अनाज।
सुख मुरधर बिलसै दिन साजां राजा मान ताहरै राज॥
सर भरिया हरिया मन सोहै, धीणा वही घर-घर धन धान।
प्रजा सुखी जस दवा पयंपै, गढ़पत अवचल सुतण गुमान॥
वरण च्यार खाटे खट-व्रण, धिन तपस्या नवकोट धणी।
हरचद विजै वार जेही हब, तिसी बार न्र्प त्झ तरणी॥
सपत ईत त्रय ताप नसाया, जबर सहाय पत जोगेस।
छत्रपत मांन तूझ छत्र छाया, द्वापर थाया मुरधर देस॥