धड़ लाकड़ हुवै बळै हंस धूंआं, झाळ हुवौ रणताळ झलू।
बळगौ खाग अभाग बैरियां, बळती आग बज्राग “बलू”॥
ऊपर सत्रां पड़तां ईधण, घ्रत रत दरड़ै पूर-घणौ।
पौरस झाळ काळ पंडवेसां, तगस भटकियौ “पाल” तणौ॥
मेछां घड़ा अभनमों “मांडण”, सांफळगो पुळगो सबळ।
बटका हुय कटका बाणासां, झटकां भटकै धोम झळ॥
हाथां मछर केवांण हूविया, सुरताणां माथै यर सूळ।
असुरां थाट काट आवटियौ, मंगळ झळ ठरियो कळ-मूळ॥