असुर बोलियो कुबोल पतसाह मुंह आगळी,
राज बिण खत्री धरम कमण राखै।
दूसरा “माल” वरदांन तौनूं दिवूं,
“अमर” मौ काढ जम-दाढ आखै॥
आछटी कमर सूं हाथ चाढ़ी ‘अमर’
जोर जम-दाढ में खुधा जागी।
ऊमरा साहरा साह मुंह आगळी,
लोह छीपाविया गळणं लागी॥
ऊजळै भुजाडंड चढे “अमरेस” रै
देव बळ लियण वरदांण देवा।
कठहड़ै कटारी खाय गळौ कीयौ,
लचर कै वधै पतसाह लेवा॥
झाळ व्रन हुई अँब-खास बिच झळहळे,
मार हेकां बियां हिये मिळती।
“अमर” ची भगवती खुरम मुंह आगळी,
गळ ग्रजै ऊग्रजै मीर गळती॥
चरच केसर अगर धूप हूं चन्दणां,
पाट-पत तैं ध्रवी सूधार पूजा।
“अमर” जुगां लग नरां नाम रहसी अमर,
दाखियौ कटारी “सूर” दूजा॥