कीचक बाली कदिन, पुरुर्वा पविपांणी।

लम्पट भये लंकेस, जूत खाया जग जांणी।

पीथल जयचंद प्रगट, मार खाई रण मीठी।

नवरोजी परनार, दिली गठ गइ सह दीठी।

आंख हियै खोल देखो अबै, जगत सोभा जार री।

कोट रा कोट ढहता किता, चोट लगी विभचार री॥

जिण लागां हुय जाय, न्यायकारी अन्याई।

जिण लागां हुय जाय, भाई रौ दुसमण भाई।

जिण लागां हुय जाय, बुद्धि वाळौ बेबुद्धी।

जिण लागां हुय जाय, सुद्धि वाळौ बेसुद्धी।

पिण्ड रै आंण लागां पछै, पड़ै सीस पैजार री।

मेट रे मेट मोगा मरद, बुरी फेट विभचार री॥

हुवै प्रथम धन हांण, घणों तन पांण घटावै।

कोई राखै कांण, मांण परतीत मिटावै।

अपजस छावै आंण, अवल अवसांण आवै।

जांणत होय अजांण, बांण नर री विसरावै।

तार रौ नहीं सुख तेड़ में, पावै दुःख अपार रौ।

सार रौ बांण खटकै सदा, नेह पराई नार रौ॥

कुलछामी नै लागे काट, खाट में जूता खावै।

अंग में होय उचाट, जाट जोगी बण जावै।

घर-घर ओघट घाट, टाट निस दीह कुटावै।

दिल नहिं लेवै दाट, लाट गंज हाट लुजावै।

निज थाट खोय फीटा निलज, साट बूजै सार री।

आट ही बाट भागै अकल, चाट लगै विभचार री॥

गरमी होवै गात, जदे बैदां घर जावै।

ओखद मूंडै आंण, छैल लाळां छिटकावै।

तेल हींग रौ त्याग, वृद्ध नारी बिलगावै।

निज इन्द्री कर नास, ग्यांन बिन जन्म गमावै।

कांम थें इसौ नीचौ कियौ, च्यार पंगा धृग चाढियौ।

भज भांम गाल बटकौ भरयौ, कांई गटकौ काढियौ॥

अपणायौ अपणेह, पुरुष कद होय परायौ।

तूं कद री पतिव्रता, कंथ अपणौ छिटकायौ।

ठाकर हूतौ ठीक, पावड़ी चड़ण पातौ।

हूं जांणंतौ इसी, बिटल नें थूक बगाती।

अगाड़ी थूं जा आगड़ौ, फीटा पड़ै फिटोळबा।

एक नै एक देखो अबै, आपस देवै ओळबा॥

निज पितु छोडै नीच, तुरत छोडै महतारी।

निज ध्रम छोडै निपट, निलज छोडै निज नारी।

भल छोडै निज भ्रात, छैल कुळ घर छिटकावै।

प्रभु नै छोडै परो, जिकण दिस फेर जावै।

दांम री भांम झेली दुकर, भव सारै नै भांडियौ।

छिता पर इता गुण छोड दै, रांड छोडै रांडियौ॥

पिंड री गई प्रतीत्त, मांण मिटग्यौ मरदां में।

ग्यांन मिळ गयौ गरद, दांम रुळग्यौ दरदां में।

लात घूथ लाठियां, बणी आछी वरषा बळ।

जूत भेट व्हा जठै, नाक हुयग्यौ निछरावळ।

विभचार मांय पायौ विभौ, जातां जुगां जावसी।

नित स्वाद लियौ परनार में, याद घणा दिन आवासी॥

वेद सुणियौ विमळ, खेद पाई तन खोयौ।

सांड हुय रह्यौ सदा, रांड रांडहि कर रोयौ।

न्याय जाण्यौ नितुर, निजल जांणी नहिं नीती।

निज नारी व्रत नेम, रुगड़ आंणी नहिं रीती।

परदार प्यार हुयगौ प्रमत, बिन सींगा रा बैलिया।

भोग रै मांय भँवता भँवर, गयौ जनम सब गैलिया॥

स्रोत
  • पोथी : ऊमरदान-ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ऊमरदान लालस ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : तृतीय