अवधि राज करि इधक, महल सुख कीध महांबळ।

सझे त्याग असमेध, दइव जीता बौह नपदळ।

भार उतारे भोमि, अवधि सैदेह उधारे।

वसे रांम वैकुंठ विमळ जग जस विसतारे।

अघ नास कहत भाजंत अघ, जनम कोटि कीधा जियां।

जिण वंसि रांम प्रगटे जिकौ, वंस सुधिन रघुवांसियां॥

सुधन्य माता कौसल्या, तात दसरथ धनि भूपति।

अवधि पूरि धनि अवनि, प्रिया धनि सीत तासपति।

धन्य सत्रघण धन्य लखण भरथ धनि जै हर भाई।

धन त्रेतायुग सुधनि, वांणि बाळमीक वणाई।

सुग्रीव अंगद हणुमत सहतं, आतम धनि आहंसियां।

जिण वंस रांम प्रगटे जिकौ, वंस सुधिन रघुवंसियां॥

स्रोत
  • पोथी : सूरजप्रकास ,
  • सिरजक : करणीदान कविया ,
  • संपादक : सीताराम लालस ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण