तपै गीणंदर सूर, चंद पण्य एको छाजै।

पांणी नाऊं एक, पवण पण्य एको वाजै।

मह पण्य एकाएक, वासदेव एक सवाई।

झंभ गुर पण्य एक, डरे जंपो भाई।

रूप घणां आगै कीया, माण गरब दैतां मल्यौ।

झंभ सीरीखो अैसो गुर, कल्य मां ओर सांभल्यौ।

आकाश में एक सूर्य और चन्द्रमा है। पानी का, हवा का एक ही नाम है। पृथ्वी भी एक है और वासुदेव (अग्नि) भी एक ही है। सतगुरु जांभोजी भी इस कलियुग में एक ही है, जिनको कुकर्म से बचने के लिये स्मरण करो। जाम्भोजी ने आदिकाल में अनेक रूप धारण किये हैं, जिन्होंने राक्षसों के अभिमान को चूर किया। जाम्भोजी जैसा सतगुरु इस कलियुग में और कोई नहीं सुना है।

स्रोत
  • पोथी : वील्होजी की वाणी ,
  • सिरजक : वील्होजी ,
  • संपादक : कृष्णलाल बिश्नोई ,
  • प्रकाशक : जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : तृतीय