शीलवंत सोई जांण, नार परणी सोई सांची।
और सकल माँ बहेन, संग बरते नहीं काची॥
हरख बिना ले नहीं, गवु बैठी नही छेड़े।
बिन आदर नही जाय, घरें काह बिन तेड़े॥
सुखराम ईसा पण बरतले, भजन करे कहूँतोय।
से नर-नारी संत है, और भिखारी होय॥