संत येक भजनीक, भक्ति हरि सेवा प्यारी।

दई जोग संजोग, दुष्ट ताकै गृह नारी।

दरसन आवै कोई, गाइ मारण को धावै।

श्वान देखि उठि भूसै, दौरि काटण को आवै।

तब रोटी पूलो वेसले, जथा जोगि आगै धरै।

कहै बालकराम महा पुरुष को, जिज्ञासी दर्शन करै॥

स्रोत
  • पोथी : पंचामृत ,
  • सिरजक : बालकराम ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा,दादू महाविद्यालय मोती डूंगरी रोड़, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम