ऋषभदेव अवतार भए अवधूत असंगी,
मोह मान मद भारि अंगतै भए अनंगी।
वर्जित विषय विकार सील संतोष सहजसम,
दया रूप निजदेह दीन वत्सल आतमदम।
परब्रह्म परम पावन पुरुष अविकारी आनंदमय,
पूरन प्रसिद्ध नरहर सु प्रभु जयति जयति ऋषभेसजय॥