मधि त्रेताजुग चैत्रमास, सकंति-मोखि सरि।

करक लगन पख सुकळ, धरा पत्रवसु नखित्र धुरि।

प्रगटि ऊंच ग्रह पंच, राग उच्छाह निरंगा।

जनमे भरथ केकई, सत्रघण लखण सुमित्रा।

बजि थाळ सकळ वाजिंत्र वजे, कुसम सघण सुरियंद किया।

वेखियां हीज आवै वणै, उण दिन तणी अजोधिया॥

स्रोत
  • पोथी : सूरजप्रकास ,
  • सिरजक : करणीदान कविया ,
  • संपादक : सीताराम लालस ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण