ब्रह्मग्रेह पर ब्रह्म धर्यौ, निज देह धर्म हित।

मात बंधु पितु वचन, हतेत उपाय अलेपित।

कर्म क्षत्र द्विज देह, ब्रह्मचारी व्रत धारीय।

कीय निक्षत्र इकवीस वार, भूव भार उतारीय।

कृत चरित कहे नरहर सुकवि, विमल कीर्ति जग वित्थरीय।

त्रैलोकनाथ भृगु कुल तिलक, कारण इहिं अवतार कोय॥

स्रोत
  • पोथी : नरहरिदास बारहठ ,
  • सिरजक : नरहरिदास बारहठ ,
  • संपादक : सद्दीक मोहम्मद ,
  • प्रकाशक : महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश, जोधपुर। ,
  • संस्करण : प्रथम