नख शिख शुद्ध कवित्व पढ़त अति नीकौ लग्गै।
अंग हीन जो पढ़ै सुनत कवि जन उठि भग्गै।
अक्षर घटि बढि होइ खुडावत नर ज्यौं चल्लै।
मात घटै बढि कोइ मनौ मतवारौ ह्ल्लै।
औढेर कांण सो तुक अमिल, अर्थहीन अंधो यथा।
कहि सुन्दर हरिजस जोव है, हरिजस बिन मृतकहि तथा॥