जगत भेख कैसे लखै, संतन का मग झींन।
पंछी खोज न दरस है, जैसे मारग मीन।
जैसे मारग मीन, दरद बेदरदि न जांणै।
ब्यावर केरी पीर, बंझ गम नाहिं पिछाणै।
बाहिर तौ संसार सा, अंतर ब्रह्म सूं लीन।
जगत भेख कैसे लखे, संतन का मग झींन॥