नाम काजि नारियण चीर द्रोवै वद्धारे।

नाम काजि नारियण सिंघ होइ साध ऊबारे।

नाम काजि नारियण लंक गढ़ लेह समप्पे।

नाम काजि नारियण थान अविचळ ध्रू थप्पे।

चे जपै नाम ते निसतरै गंजै तांह कोई गण।

‘नांदीयौ’ कहै भूलां नरां नाम छाडौ नारियण॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य सम्पदा ,
  • सिरजक : नांदण बारहठ ,
  • संपादक : शौभाग्य सिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम