अपनैं अपनैं समय, विहित तप तेज राजवल।

धर्म नीति दिविलोक, करत रक्षा महिमंडल।

तिहि प्रसाद मष भाग, सकल निरभय सुरपावत।

आप आपनै काज, लोक लोकेश चलावत।

विस्तार सृष्टि विधि, निर्वघ्न जिनि अनेक।

दुर्जन जए कहि सप्त दून, नरहर सुकवि मन्वंतर अवतार भए॥

स्रोत
  • पोथी : नरहरिदास बारहठ ,
  • सिरजक : नरहरिदास बारहठ ,
  • संपादक : सद्दीक मोहम्मद ,
  • प्रकाशक : महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश, जोधपुर। ,
  • संस्करण : प्रथम