माला तिलक आदि वादि, एष करै अज्ञानी।

वर्णाश्रम को धर्म, वेद विधि मानैं प्रानी।

खट दर्शन जग माहि, छयानवै पाखंड गाया।

पंथ नाना प्रपंच, संप्रदा भेद बणाया।।

यहु धर्म अनात्म देह को, सुनि ज्ञान ग्रंथ वेदांत को।

कहि बालकराम भरमै नहीं, राखै एक सिद्धांत को॥

स्रोत
  • पोथी : पंचामृत ,
  • सिरजक : बालकराम ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा,दादू महाविद्यालय मोती डूंगरी रोड़, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम