के अक्षौहनि कटक मेलि रघुपति रण चल्यो।

रावण रण भूमीय पड़्यो, सायर जळ छल्यो।

जय निसान बजाय जानकी निज घर आणि।

दसरथ सुत कीरति भुवनत्रय माहि बखाणी।

राम लक्ष्मण अेम जीतिने, नयरी अयोध्या आव्या।

महीचन्द्र कहे फळ पुन्य थिएड़ा, बहु परे वामया।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के जैन संत: व्यक्तित्व एवं कृतित्व ,
  • सिरजक : भट्टारक महीचन्द्र ,
  • संपादक : डॉ. कस्तूरीचंद कासलीवाल ,
  • प्रकाशक : गैंदीलाल शाह एडवोकेट, श्री दिगम्बर जैन अखिल क्षेत्र श्रीमहावीरजी, जयपुर