विदित तीन अरु बीस भए अवतार अगंजीय।

सत त्रेता द्वापर संजोग कारण सरूप कीय।

अरु कलि जुग कै अंत हेत अवतार सु व्है हैं।

धर्म कर्म मष ध्यान जबै निर्मूलन सै हैं।

भव तव्य पुण्य विस्तार भुवहटि अशेष जवनेश हति।

अषिलेश श्वेत हय आरुहित प्रभु कल्की त्रेलोक्य पति॥

स्रोत
  • पोथी : नरहरिदास बारहठ ,
  • सिरजक : नरहरिदास बारहठ ,
  • संपादक : सद्दीक मोहम्मद ,
  • प्रकाशक : महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश, जोधपुर। ,
  • संस्करण : प्रथम