जीत होई जुग सहस तते अंजस तप किज्जै।

विना दम्भ वसि होइ कसट परकाज सहिज्जै।

कोटि भार कुरखेति रुकम दीजै रवि संकट।

गलियै जाइ हेमगिरि धाट लंघे घट औघट।

दुरभेख अंन दीजै प्रघळ ले कन्याहळ लख्ख दह।

केसव्व तुहाळा कीरतन पासंग नांवै पंन सह॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य सम्पदा ,
  • सिरजक : नांदण बारहठ ,
  • संपादक : शौभाग्य सिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम