जे खर बोझ ठाण्य, पास्य कजीये के काणौ।
कण को रीड़ कजीयो चर, दिन प्रत्य दीजै दाणौ।
खरतर खिजमति दार, ख्यांति खुरहरो करीजै।
पाणी पणहटि जाय, नीर निरमल न्हावीजै।
छुटतो ओखर करै, उकरड़ी जाय लीटै।
वील्ह कहै कीसन चीळत वीण्य, नीहचै असली न पाल्टै।
इस पद में असली गुण की पहचान गधे और घोड़े की तुलना से की है। गधा बोझ ढोने वाला जानवर है। यदि उसको घोड़े के पास बांध दिया जाये, उसको घोड़े के समान दाना दिया जाये, उसकी सेवा करने वाला नौकर उसको खुरहरा( घोड़े की धूल झाड़ने का उपकरण) करता है व पनघट पर ले जाकर उसे पानी से नहलाता है लेकिन जब उसको छोड़ा जाता है तो वह गंदगी करता है और अकूरड़ी (गंदगी का ढेर) पर जाकर लेटता है। कवि वील्होजी कहते हैं कि विष्णु भगवान की कृपा के बिना निश्चय ही असली गुण नहीं छूटते हैं।