जाळोअळि नह जळै जलिहिं क्यों गळे जाऐ।

अनिल क्यौं ऊडवै वाउ जो उडंडा आवै।

नितुहं जुगाजुगि नवौ पछै नह थियै पुरांणौ।

वेचि समां ब्रासोयोइ साथि आवै सहिनाणौ।

किपणह जेम धन उरि करै घणौ घणौ घणौ हीज घणौ।

‘नांदीया’ नांम रौ तिम करै सांचौ सारंगधर तणौ॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य सम्पदा ,
  • सिरजक : नांदण बारहठ ,
  • संपादक : शौभाग्य सिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम