इहिं प्रकार अषिलेश पुरुष हयग्रीव प्रगट्टीय,
दुष्ट मारि संधारि असुर माया औहट्टीय।
अमरवृंद आनंद निगमहि तरहत निरंतर,
विधि सनाथ कृत विश्व नाथ पर ब्रह्म दया पर।
हत हयग्रीव आसुर अहित भयौ अचिर्ज त्रयलोक भुव,
उद्धार निगम नरहर सुकवि हयग्रीव अवतार हुव॥