जय जय गणपतिदेव, देव सेवत सुभकारिय।
नमो शकति नारायण, परम गुरु-चरण प्रछालिय।
अगम अलेख अपार, कौण पावंत पार नर।
अति मति मो अनसार, वुधितम करण विमल वर।
कर जोर जुगल विनती करों, ल्यों निवार आग्या लहों।
निगम सुगम हौं नृपति के, कथि प्रतापरासो कहौं॥