माला तिलक न भक्ति, भक्ति नहीं छापा दीये।
भद्रभेष नहि भक्ति, भक्ति दासा तन कीये।
भक्ति नहीं खट कर्म भरम भूले अज्ञानी।
भक्ति नहीं आचार, प्य मृतका बहु पानी।
तो भक्ति नहीं कछु नगन तन, देखौ भुगत कर्म को।
कहि बालकराम पावै नहीं, प्रेम बिना परब्रह्म को॥