जगत भेख कैसे लखै, संतन का मग झींन।

पंछी खोज दरस है, जैसे मारग मीन।

जैसे मारग मीन, दरद बेदरदि जांणै।

ब्यावर केरी पीर, बंझ गम नाहिं पिछाणै।

बाहिर तौ संसार सा, अंतर ब्रह्म सूं लीन।

जगत भेख कैसे लखे, संतन का मग झींन॥

स्रोत
  • पोथी : श्री सेवगराम जी महाराज की अनुभव वाणी ,
  • सिरजक : संत सेवगराम जी महाराज ,
  • संपादक : भगवद्दास शास्त्री, अभयराज परमहंस ,
  • प्रकाशक : फतहराम गुरु मूलाराम, अहमदाबाद ,
  • संस्करण : प्रथम
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