चारि वेद की साखि, विष्णु गीता में भाखी।
दादूदास कबीर, साखि सुंणि हिरदै में राखी।
जल थल अगनि प्रवेश, बहुत हिसा तिन माहीं।
पवन दाग निरदोस, जीव भच्छन करि जाही।
अरू विरह अगनि गोपी दगध, ज्ञान अगनि जोगी जरै।
कहि बालकराम खट दाग येह, अज्ञानी औगुण धरै॥