देव मेली दुज्य, पंथ ता पासै टळिया।

मेल्ह सुगर की गोठि, जाय सैतोन भिळिया।

कूड़ घड़ै मन मांहि, जीभ ता अळीयो भाखै।

आप करही ध्रम, अवर करतै नै राखै।

राता विष विकार सूं, आप सुवारथी परहती।

वील्ह कहै एक वीनती, विसन टाल्य वेदांनती।

जो परमात्मा के रास्ते को छोड़कर दूसरेकुकर्मियों के साथ चला गया। जो सतगुरु की संगति छोड़कर शैतानों के साथ हो गया। संसार के लोग अपने मन में झूठ जीभ से गलत प्रवचन करते हैं। स्वयं कार्य करते हैं और दूसरों को करने देते हैं। स्वयं विषय-विकारों में फंसे हुए, स्वार्थ के वशीभूत रहते हैं। वील्होजी यह विनती करते हैं कि हे विष्णु भगवान, मुझे ऐसे झूठे वेद-कथन कहने वालों से दूर रखिये।

स्रोत
  • पोथी : वील्होजी की वाणी ,
  • सिरजक : वील्होजी ,
  • संपादक : कृष्णलाल बिश्नोई ,
  • प्रकाशक : जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : तृतीय