अतुल बुद्धि बल ईस रूप अद्भुत अवरेष्यौ।
प्रगट रूप पाखंड देव हूं सुन्यौ न देख्यौ।
असुर मोह उपजाइ निगम मष कीनैं खंडन।
एक अहिंसा धर्म विदित सुरशोक विखंडन।
सुर सिद्ध करे जय जय सबद कीर्ति सुकवि नरहरि करीय।
अषिलेस अमर कीनै अभय बौद्ध धर्म जग वित्थरीय॥