अगसत विण आंग मै, कवण सामंद्र पयाळै।
अण संका विण हरगू, कवण लंका पर जाळै।
कवण अखैवड़ विगर, प्रलै सागर सिर सोभै
कवण विनां सुखदेव, देव माया नह लोभै।
सिसमार चक्र ध्रुव विण सु तो, भजै न कुण रिसि गण भ्रमण।
अंगमै साह अवरंग सूं, कमँधां, विण चाळौ कवण॥