पाबू के पूजा स्थल कवि की अराधना।

आरत सुण ने आव। डांवरै रै खैड़ै सूं।

पीर अरज सुण पाल। आव सोनड़ै रड़ै सूं।

कमध आव सुण कूक। धुणारी रां झाड़ां सूं।

कुरची हूंता कहूं। ‘पाल’ कैरू पाहड़ां सूं।

महि मालम थांन मसूरियो। ओथ हूंत खड़ आवजे।

वेगड़ा पाल गऊ वाहरू। धमयक जेज लावजे॥

स्रोत
  • पोथी : पाबूप्रकास-महाकाव्य ,
  • सिरजक : मोडजी आशिया ,
  • संपादक : शंकर सिंह आशिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम