आक ईख आदीत, आँखकारी युं करमी।

ज्यूं मरकर सिर पांव, अई पोपा कूं चिरमी॥

सरप दूध विषय होय, मरे खर मिश्रि खावे।

चहुँ दिश सायर नीर, प्रेत प्यासो दुःख पावे॥

यूं करम ही के नही बणें, साध संगत को जोग।

दाख फळ्यां सुखराम कह, हुए काग के रोग॥

स्रोत
  • पोथी : संत सुखरामदास ,
  • सिरजक : संत सुखरामदास ,
  • संपादक : डॉ. वीणा जाजड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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