दोहा
श्री अम्बे करनी सगत, आपे बुद्धि अपार।
तो कीरत मो मुख तणी, श्रवणां लीजे मार॥
चवदैसै चम्मालवै, कथं मास शुभ क्वार।
सुद पख सुक्कर सप्तमी, आप लियौ अवतार॥
बाघ वाहणी वीसहथ, रहे संग सुरराय।
अन धन दीजे ईसरी, मोय प्रसू महंमाय॥
देवी तव कीरत दखूं, नित्य भवा सिर नाय।
सकळ मनोरथ कर सफळ, मेह सुता मुझ माय॥
छंद मोतीदाम
नमो तुझ मेह सुता करनल्ल, सदा कर रेंणव काज सफल्ल।
प्रसू तव देवल आढ़िय पाय, मही पर धन्य हुई महंमाय॥
सही किनिया कुल ग्रांम सुवाप, अहो जय ऊपजिया धिन आप।
रहे सुख सप्त ग्रहां रंग राग, भया पितु मेह तणा वड भाग॥
मही जस वेल वधंतिय मांन, दिया घण दीप वधू वरदांन।
रहै नित भूषण अंग सरूप, अती पय नूपुर सोभ अनूप॥
फबै मुंदड़ी बिरिया सिरपूल, सिरै कंठश्री वर हार त्रिसूल।
सदा तन कंकण चूड़ सुहात, रहै कर चक असी दिन रात॥
सजै घण आयुध रम्य शरीर, करन्नल चड्ढत यान कठीर।
चमक्कत गात मनोहर चीर, वहै अग जोगण बावन वीर॥
करै नर याद सचै दिल कोय, जठै क्षण बीच संभारत जोय।
अटक्किय नाव दधी बिच आय, वधा हथ लीधौय साह बचाय॥
अही बण वर्त जुरी धिन आप, तठै हर तक्ष हु को दिल ताप।
हठी नद नृप्प करी उपहास, वणी सिंघ कीध हु कान्ह विनास॥
दुखी निज सेवक को घण देख, शिवा बण चील उबार्यो शेख।
पती धर जैसल व्याधित पीठ, अहो नृप तार्यो मेट अदीठ॥
गुणी नह दक्ख सफै गुणगांन, दियौ तैय क्षत्रिय जीवत दान।
पड़्यौ नृप पूगल पै पावे पोट, उणी पुळ लोवड़ कीधिय ओट॥
रखी नह ईळ बिहां नर रूप, किया मुख जम्बुक जेम कुरुप।
लखे पय कष्ट रखाड़िय लाज, कियौ सर ऊसर में शुभ काज॥
अड़्यौ गंध भंज्य मरू विच आय, धिनो पग काठ तणौ किय धाय।
प्रथी पर धारैय हत्य प्रहास, निसाचर हंदौय कीध विनास॥
प्रवाड़ाय कीध इळा भरपूर, रखै पत देविय भक्त जरूर।
अगे मढ़ त्रंबक बाज अनेक, करै भणकार म्रदंग कितेक॥
तुरी वज भूंगळ ढोल सितार, करै डमरू बरघू बणकार।
उंडै घण केसर और अबीर, सुहावत देविय भव्य शरीर॥
चै अग जोगण भैरव नित्त, अपच्छर नृत्त करत्त अमित्त।
लक्कत सीस किरीटह पूर, निरक्खत वासव जोगण नूर॥
विधि नित वांचत च्यारुंय वेद, खळां दळ अत्त पहूंचैय खेद।
अमै नव लक्ख सुरांणिय रास, खणा अत बोलत अज्जर खास॥
खड़ी हथ लोवड़ियाळिय खाग, नमै सह अम्मर औ नर नाग।
वड़ी खुश होय दखै मृदु वाक, छिकै जद लेत धिनों मद छाक॥
धरै नर भेट सिरैफल ध्याय, अती पय मेवाय चाढत आय।
पलां भर पूजक विप्पत पाय, मया कर सार लहै झट माय॥
वसू पर धन्य गरीब नवाज, तुंही नवलक्ख तणी सरताज।
मही पर दर्शक लोग हमेस, नमै सिर नाय तिहारैय नेस॥
करंतांय वीदग हेक पुकार, सुरांणिय वेगहि लेवत सार।
तुंही सह मेटत रोक रु ताप, अबक्खिय ऊंणत भंजय आप॥
जपै धर ऊपर देविय जाप, करै सुख संपत ही अरि काप।
धरै कवि शक्त करन्नल ध्यान, दहे मुझ वेग भवा वरदान॥
छप्पय
मेह सुता महंमाय, ईहगां नव निध अप्पै।
प्रहरण धारै पांण, केवियां कंदल कप्पै।
मधवा शेष महेश, जोड़ भुज तोनूं जप्पै।
कृपा करे करनल्ल, सेवगां सुक्ख समप्पै।
नर नाग देव सिंवरै निपट, हरी चढ्ढ संकट हरौ।
कर जोड़ सगत कवियौ कहै, करनल सुख संपत करौ॥