(कवित्त छप्पय)
बंधि घटा आषाढ़, गगन घोरत जलधर गन।
बरखि नीर भूम्मिय, सुबास सीतल आगमध्वन॥
क्रषि उधिम कुंपरित ब्रछ, बक ब्यौम बिहारत।
सुनि सुनि गाज अवाज, मौर मल्लार उचारत॥
चमकंत बीज दस दिस बिषंम, विरहिनि निस आकंप तनुं।
तप कियौ धरनि ग्रीखम सुरित, इंद्र मिलन फल पाय मनुं॥
(दूहा)
बरष रात तजि मत्त चित, करक अरोहित भांन।
सांवन बूढ़न करत रंग, का पूछिबो जवांन॥
(छंद त्रौटक)
रितु पावस लुम्मि सु घुम्मि घनं। मनु त्रांन कसें नभ स्यांम तनं॥
जल बुठ्ठि अखंडित धार धरं। मनु नैंन बियोगिन नीर झरं॥
धर खंजन हंस अलोप भयं। मनु जात सु बुध्धि कुबुध्धनयं॥
सुकि पत्र जवास अरक्क तरं। क्रतहा न्रप मांनहु सेव नरं॥
दिसि च्यारहु ब्योम घनं गरजं। बिरही मनु जैत निसांन बजं॥
गहि कांम कमांन कसीस दियं। बिरही जन खंड बिखंड कियं॥
भरि नीर लघू सर जे उझलं। मनु तुछ्छ बुधं नर बाकचलं॥
बुग पावस बेठि चुगावतती। इक आसन थप्प मुनिंद जती॥
निस भद्दव झिंगन जग्य भलं। मनु तोर चमंकत कांम दलं॥
ससि सूरज छाय घना घनयं। मनु आव्रत दंभ सुधं जनयं॥
लपटी लतीका तरू मंजरयं। परि रंभ मनौ बरनी बरयं॥
सरिता मिल बारिध मोद जुतं। धरनी मघवांन मिली सुहितं॥
थकि पंथिय पंथ प्रचारनयं। जल मग्ग अमग्ग बिहारनयं॥
कुहकंत मयूर सुमत्त धरं। मनु कांमन कीब अवाज करं॥
मनभावन सावन आवनयं। विरही दुख सुख संजोयनयं॥
बरखा रित भीम सजोखनयं। बिलसंत हरम्प झरोखनयं॥
मद पांन क्रत अति मोदतनं। भ्रत हाजर जे अनुरूप मनं॥
अरु सांवन भद्दव तीजनयं। हय रोहि बिहारत भीजनयं॥
जहं लग्गत इंद्र सुनीर भरं। पवसाक सुरगिय भींजि वरं॥
घन संमुख बाज बिहार क्रतं। दिन दुल्लह भीम उछाह चितं॥
दत बाद तुरेस तुरेस परं। जर द्रब्य इतै उत नीर झर॥
बह देत जलं मुख स्यांम रुखं। यह द्रब्य ब्रवै प्रफुलंत मुखं॥
जगपाल किय बिध या सहलं। फिर कीन्ह प्रवेस न्रपं महलं॥
करि अंग सिंगारि मुदं चितनं। निस नारि विलासि पतिब्रतनं॥
उठि ब्रंह्म महूरत गौ दरसं। नित क्रत्य किये सिव पै परसं॥
रितु पावस यौं बिहरंत न्रपं। फिर आय सरद्द सुहाय वपं॥