विरदैत जु जोध अनंत बली,

रिन ठांनत मांनत रंग रळी।

रस वीर मई मन वृत्य रहै,

चित लोभिय कौ जिम वित्त चहै॥

मृगराज जगावत आप मतै,

रन रोष रचै रस रुद्र रतै।

विकराळ फनी मन वीस विसै,

निहसंक उतारत द्यौस निसै॥

मन यौं पत सासन मानत से,

जगदीस ज्युं ही जिय जानत से॥

बहु भांत जु आयुध भूंप लियैं,

हित अच्छर यूं कविराज हियै।

गज कुंभ विदार वडै थल के,

विसतार करै मुकता फल के॥

गज दंत उखारत हाथन सौं,

गह लेत मनूं नभ बाथन सौं।

अरजे जिनसूं मिल जंग अरै,

नभ भीम मतंगन संग करै॥

पद लंगर लाज वडै ब्रत के,

धर मंडन सागर से ध्रत के।

मन अच्छरिय मन भावत से,

रन रंग पतंग रिझावतसे॥

सुभ पच्छ अच्छर के दळ से,

खयकार तिन्है कुकवी खल से।

भुजडंड प्रचंड जिहान भनैं,

अहराज मनूं सुख साज सनैं॥

रन पाव सुराचल से रुपमा,

उर वज्र कपाल लियै उपमा।

रन मै रिपु पीठ देख सकै,

सुसत्री मुख और पेख सकै॥

स्रोत
  • पोथी : नाथ चंद्रिका ,
  • सिरजक : उत्तमचंद भंडारी ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी, जोधपुर
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