कीरत हेमाळै कथूं, दरसावूं गिर देस।

बरणन अणहद बीहड़ों, नम नम आज नगेस॥

त्रोटक छंद

सह देव जठै विचरै सखरा,

खळळाट वहै नद-नाळ खरा।

घण गूंजत नाद महा गहरा,

दुनि लाख नमौ तुझ देवधरा॥

धवळास भयी हिम सूं धरणी,

वड लाख झरै उथ वैतरणी।

गढ शैव अरु बुद्ध गौतम रा,

दुनि लाख नमौ तुझ देवधरा॥

गिर पै गिर राजत है गगना,

मनु देखत ही चित में मगना।

हद चीड़'रु पींपळ देव हरा,

दुनि लाख नमौ तुझ देवधरा॥

दुख पाप हरै गंग कौ दरिया,

नद सिंधु ढळै नित नीर लियां।

भल भाग कहौ नित भारत रा,

दुनि लाख नमौ तुझ देवधरा॥

दरवेस बसै उन डूंगर में,

हठ साध भजै तपसी हर नै।

पसुनाथ करै उणरा पहरा,

दुनि लाख नमौ तुझ देवधरा॥

गढ कांगड़ कीरत है गहरी,

पँच पांडव एथ रह्या पहरी।

भल मान सरोवर नीर भरा,

दुनि लाख नमौ तुझ देवधरा॥

दुनियांण हल्लै दृग देखण नूं,

प्रत डूंगर सूं सध पेखण नूं।

चड़ यूं इठळावत चोट सरां,

दुनि लाख नमौ तुझ देवधरा॥

सह बात सुणौ इतनी श्रवणा,

भम डूंगर भांज उरां भ्रमना।

निज चेतन चाकर होय नरा,

दुनि लाख नमौ तुझ देवधरा॥

स्रोत
  • पोथी : डांडी रौ उथळाव ,
  • सिरजक : तेजस मुंगेरिया ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन