छिब अच्छिय कज्छिय वाजन की, मत मोहत हैं कवराजन की।
खित खूंदत हैं खुरतालन तैं, पुन काढत नीर पताळन तैं॥
मन रंजन गंजन खंजन के, जनु वाहन कैटभ भंजन के।
भ्रग व्रंदन कौ मद मेटत से, भुव पांव धरै बिनु भेटत से॥
छरिया तन नैंक छुवावत ही, धर अंत दिखावत धावत ही।
विध के चित पच्छ लगावन की, न भई फुरती वस पावन की॥
निकसै गत कोटिक पायन तैं, सुभ लच्छ स्वरूप सु भायन तैं।
पग पौर वजैं वर वेग लियैं, दहलै धहलै अहराज हियै॥
मन से पुंन चंचल मारुत से, सरसे पुन सागर के सुत से।
ढरबोहि करै धर पारद से, नव नृत्य संगीत विसारद से॥
यह रीत सु चंचळता उघरै, कुळटा जिंह रीत कटाछ करै।
अरु नालन सौं गिर चूरत से, पौहमी रज सागर पूरत से॥
मध थाल नचै जु दियै चुटका, जिनकी समता न करै गुटका।
उचकै जु उंतग सफील अटा, गत ऊंचल है नट कौ नवटा॥
फब फाल लंगूर मनू फरकै, जल जंत्र सुढारन पै ढरकै।
रस रागन वागन के वस में, गिनती जिम आंन मिलै दस में॥
मत लीन सलोतर द्वारक की, प्रचला रसना जनु तारक की।
गत बावन सीमहि मप्पन की, दुत दौरत भांत दरप्पन की॥
सब सख्खर पख्खर भार भरे, सुत मारुत से गिर द्रोन धरे।
तिन फेट गिरै गजराज घने, यह भांत तुरंग समाज बने॥