उठियो सुलतांण अंगा उससै।

मुख तार सुरज्जण नूर वसै।

खळ खेध सेरै जमडू खहरै।

कर जोड़ सलांम अलेख करै॥

उहपाड़ बिड़े मुज सेनरियूं।

वेहला वेहला मुख अेम वयूं।

पड़पट्ट पैहट्ट ऊलट्ट पड़ै।

खळखट्ट वेकट्ट उलट्ट खड़ै॥

घण थट्ट निपट्ट उलट्ट घड़ां।

कसटोप रंगावळ भीड़ कड़ां।

बांहधे जमदाढ छुरी बहसै।

केहवांण कड़ा उसरांण कसै॥

भुवथांण कबांणूह चाल भला।

चहुंवाण धरा सर रोद्र चला।

सच पोरस सार छत्रीस सहू।

तंग तांण तुरां असुरांण तहू॥

चुहलाल बंगाळ नेजाळ चले।

गळ माळ गलाळ करी मुगले।

रणताळ वेचाळ जो काल रूखं।

पट लाल कांधाळ अेक पखं॥

जमजाळ भुजाळ जिकै जवनूं।

त्रजड़ाळ भेड़ाळ नासत्र तनूं।

चंग लाल बंबाळ हरोळ चड़ै।

पड़ताळ त्रंबाळह धांस पड़ै॥

मलेछाळ चंचाळ है आप मला।

इललाह अलाह करंत अला।

थिरबाळ थुहाळ हठाळ थया।

वहगाळ बहंत पंयाळ वया॥

कलमांण कपाळ त्रिकाळ कियूं।

मछराळ सिधाळ भुजाळ मियूं।

मुघमाळ खेहाल बंबाळ मरै।

करनाळ गअेचल खाभ करै॥

हड़चाळ लंकाळ बंगाळ हलै।

कललाळ पंखाळ जेसे कवलै।

थररे चर चंगर चार थयूं।

इम गोग धरा सुरज्जण अयूं॥

प्रह ऊगम सूर समो प्रगटै।

धक धूण गऊ ग्रहली धपटै।

चल बांण कबांण खेफांन चलै।

इम रांण धरा वळिया उथळै॥

रज फूटिय बूंब धाहलरियूं।

इम आगळ गोग पुकार इयूं।

स्रवणै सुण साहळ पोरसिये।

वनखंड मांही मुगलू वसियो॥

मनमोट तारां भभकै मछरू।

सुर मुक्ख थणं घण घ्रत सरू।

मंड बारेही सूर कपोल मचै।

सचवाह जैसा अणमूंछ सचै॥

जमदाढ कसै लंक तेग जड़ै।

भ्रुह मूंछ अणी भ्रूह मांह भिड़ै।

करबांण ग्रहे करनाळ कसै।

अंग वांमण रांण जही उससे॥

कोपै मन चामंड रूप किये।

कळचाळ पयाळ अेसो कहिये॥

स्रोत
  • पोथी : मेहा वीठू काव्य-संचै ,
  • सिरजक : मेहा बीठू ,
  • संपादक : गिरधर दान रतनू ‘दासोड़ी’ ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै