खट ही रित दांन अखंड झरैं, भुवमंड नदी नद ताल भरैं।
अलि पुंज जहां अत सोभत से, मिळ गुंजत हैं सबलों भव से॥
नभ गंग सिरोरुह तारे लसें, नभ मंडळ दंतन फोरत से।
तिन छिद्रन जोत जनू निकसे, सोइ सूर ससो उड रुपल से॥
दिग दंतिय से द्रुम ढाहन से, वर वांनक वासव वाहन से।
उड भौंर कपोल प्रचंडल तैं, मधु पीवत हैं ससि मंडल तैं॥
मद मत्त पुरंदर मिंदर तैं, धुज डंड उखार धरै कर तैं।
सिर मोतिय दीरघ सुंडन सौं, क्रत पांन सुधारस कुंडन सौं॥
कर फेट विमांन गिरै हिकदा, रच हेत यहीं टर जाय सदा।
चरचैं बहु वंदन चंदन तै, नव रूप वढै सिव नंदन तैं॥
जिनके रद यूं नग लाल जरे, दुतिया ससि मंगल आंन अरे।
तन स्याम मनूं गिर कज्जल के, झलकै जनु वद्दल सज्जल के॥
पद लंगर लोह लियै गरजै, लख कैं प्रलयंबुद सों लरजै।
पर द्रुग पहारन जोस भरे, यह भांत उतंग मतंग खरे॥