जिण भोम उपजे भीम सा भट, थपट भूमंड थर थड़े।

धड़ सीस पड़ियों लड़े कमधज, झुण्ड रिपुदल कर झड़े॥

जुध काज मंगल गिणत जोधा, वीरवर विसवासरा।

परचण्ड भारत देश प्रबल, धवळ उजवल मरूधरा॥

जिय धवळ जसधर मरूधरा...

धर धाक राखण केक धरपत, होमवा तन हालिया।

परजाळ पावन गात पदमण, लाख जम्मर जाळिया॥

पण पावियो नह जिवतो पिण्ड, हाथमो हमलावरा।

परचण्ड भारत देश प्रबल, धवळ उजवळ मरुधरा॥

सनताप मेटण देसहित, अवतार करणी आविया।

जम्भेस पाबू देवता जग, प्रकट परचा पाविया॥

झणझणण करता झणकिया मीरां मेवाड़ी घूघरा

परचण्ड भारत देश प्रबल, धवल उजवळ मरुधरा॥

धड़कत औरंग धधकतो, दुरगेश जिसड़ो देखने।

मरजाद राखण भोमरी, हस झेलिया दुख केकने॥

कड़ कड़ड़ करतो कड़कियो, अरिसेन भुजबल ऊपरां।

परचण्ड भारत देश प्रबल, धवल उजवल मरूधरा॥

मीठा मतीरा जेम मिसरी, बोर काचर बावड़े।

तरू ग्वार फळियों देखने तिल, सुखी दिल हरसावडे॥

खड धान ढिगला खेत में व्हे, मोठ बाजर मूंगरा।

परचण्ड भारत देश प्रबल, धवळ उजवल मरूधरा॥

गणगौर पूजत गौरियां मधु, गीत गावत आपरा।

मिल झुण्ड मगरां निरत मांडे, मोरिया अणमापरा॥

दुनियांण में मरुदेश दीपे, साखदे इतिहास रा।

परचण्ड भारत देश प्रबल, धवळ उजवळ मरुधरा॥

स्रोत
  • सिरजक : मोहन सिंह रतनू ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी