वह राग बिलक्कळ वाजहि विम्मळ, दैण सु प्रघळ ताल बजै।
महघोक त्रमागळ भेरिय भूगळ, गोमस सब्बळ बोम गजै।
वह थाळ वळोवळ होय हळोहळ, धूज सकोयळ पाय धमै।
सिंणगार सझै मुख हास सुसोभित, रास गिरव्वरराय रमै॥
घण वज्जत गूघर पाय अपम्पर, लाखह दद्दर नद्द लजै।
घण मंडळ गूघर पास पटम्बर, बोलत अम्मर मोद विजै।
अति वासव अंतर धूजि धराधर, जोगण जब्बर खेल जमै।
सिंणगार सझै मुख हास सुसोभित, रास गिरव्वरराय रमै॥
कड़ियूं कटि मेखळ ऊजळ ओपस, दोळ दधी जळ भोम दिपै।
अति रूप असंकळ सोभत सक्कळ, तेज भळाहळ भांण तपै।
बण जोत बळोबळ वाच सु विम्मळ, भैरव सब्बळ साथ भ्रमै।
सिंणगार सझै मुख हास सुसोभित, रास गिरव्वरराय रमै॥
भुज चूड़ बिहूंभर सोभित सुंदर, क्रांत चमंकैय सूर कळा।
सर मांणक नौसर हार सुसोभित, ओप महां बरसो उजळा।
सुर संकर आद प्रणांम करै सह, साझत सुत्थर मोद समै।
सिंणगार सझै मुख हास सुसोभित, रास गिरव्वरराय रमै॥
जुग राजत कुंडळ कांन नगां जुत, सोभ सु लाजत मीन सही।
ससि पास बिराजत सूर उभै ससि, तीख सिराजित राज तही।
बहु बाजत दुंदभ फूल बरख्खत, दैत समां जत खाग दमै।
सिंणगार सझै मुख हास सुसोभित, रास गिरव्वरराय रमै॥
नकवेसर मंडळ घाट वणी निज, सोभत घाट सुघाट सरै।
मधि अब्बुज रूप विराट अमोलख, क्रीत ससी महि थाट करै।
महकै बहु माट सुवास सुधामय, वाट छड़क्कत कुम्मकुमै।
सिंणगार सझै मुख हास सुसोभित, रास गिरव्वरराय रमै॥
वण भाल तिलक्क विसाल महावर, जोत दिपे जिण जोत जई।
खटमेक बहन्न घणूं घण खेलत, मोद महा जिण जोत मई।
अलकां जुग सीस ज वेणि अदभ्भुत, नागण चप्पल जेम नमै।
सिंणगार सझै मुख हास सुसोभित, रास गिरव्वरराय रमै॥